पूस की रात
पूस की रात
पूस की रात, ठिठुरन की बात।
गर्म कपड़ों की सौगात, बस यही है राज।
पकवान गरम मन को लुभाता
लड्डू हलवा खूब है भाता।
शीतलहर से बदन थरथर आए
रजाई ,हीटर सबको याद आए।
पूस की रात की ठिठुरन की है बात।
सूरज मंद मंद जब आता
मन को मेरे बहुत लुभाता
बड़ी सुहानी लगती धूप
ओस की चादर लगती दूर।
पूस की रात की ठिठुरन की बात।
बर्फीली हवाएं चलती हैं
घायल मन को करती हैं
जैसे तैसे गुजरा मास
पूस की वह ठंडी रात।
चाय कॉफी सूप सुहाए
थोड़ी गर्माहट फिर आ जाए
हाथ पांव बर्फ से जम जाएं,
कप कंपाती ठंड सताए।
काम करने से मन घबराए
अब तो देखो राम बचाए।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
29.1.2023
Punam verma
30-Jan-2023 09:15 AM
Very nice
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Abhinav ji
30-Jan-2023 08:45 AM
Very nice 👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
30-Jan-2023 07:39 AM
बहुत ही उम्दा सृजन
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